भारतीय लोकतंत्र में डॉ0 अम्बेडकर डॉ0 अम्बेडकर का राजनीतिकरण ज्यादा और उनकी विचारधारा पर काम कम ही हुवा है.भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. और कृषि का अधिकांश भाग मानसून पर निर्भर रहता है. इसी प्रकार भारतीय राजनीति को भी अर्थशास्त्र की भाषा में समझा जा सकता है. कौटिल्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र भी राजनीति की ही किताब है भारतीय राजनीति के हिसाब से देश को जाति प्रधान देश कहा जाए तो विरोधाभास नहीं होगा .
शेयर मार्केट की तरह भारतीय जातियां कभी राजनीतिक दलों के वोट बैंक में उछाल लाते हैं तो कभी वही जातियां राजनीतिक पार्टियों के वोट बैंक को औधेमुंह गिरा भी देते हैं. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो देश की सभी राजनीतिक पार्टियां डॉ0 अम्बेडकर को अपनाने की होड़ में लगे हैं.भारतीय समाज के सबसे निचले पायदान के समाज में जन्मे व्यक्ति जिन्होंने भारतीय समाज की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी. डॉक्टर अंबेडकर ब्रांड के शेयर होल्डर बनने की होड़ लगी हुई है .ताकि दलितों के वोट बटोरे जा सकें. लेकिन बिजनेस और राजनीति में उतार-चढ़ाव का सिलसिला जारी रहता है. आजादी के बाद भारतीय राजनीति में लंबे अंतराल तक एक ही पार्टी के हाथ में शासन की बागडोर रही है सन 1975 के बाद आंशिक रूप से बदलाव की लहर देखने को मिलती है जब 1977 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की बुरी हार हुई थी तब सारा विपक्ष एकजुट हुआ था. उस वक्त का प्रमुख मुद्दा इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाना था .और 1977 के बाद धीरे-धीरे भारतीय राजनीति में बदलाव का दौर आरंभ होता है 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी और 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी का उदय होता है दोनों पार्टियों की राजनीतिक विचारधारा विपरीत थी.
बहुजन समाज पार्टी डॉक्टर अंबेडकर की विचारधारा और बुद्ध के मार्ग पर चलकर “सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय “की नीति का अनुसरण करने वाली थी तो, बीजेपी विशुद्ध रूप से वैदिक भारत और हिंदुत्व,राम मंदिर के निर्माण की विचारधारा लेकर आई थी. यहाँ से भारतीय राजनीति विशुद्ध तौर पर धर्म और जाति आधारित होने लगी. जाति जो सबसे निचले पायदान पर थी हमेशा चुनाव में सबसे ऊपर रहने लगी. डॉक्टर अंबेडकर भारतीय संविधान तो दे गए मगर आजादी के चार दशक तक भारतीय राजनीति भारतीय ,राजनेता तथा भारतीय मीडिया से गायब रहे .बहुजन क्रांति के आधुनिक अंबेडकर मान्यवर कांशीराम ने आजादी के चार दशक बाद बाबा साहब अम्बेडकर को भी जीवित किया और .सोई हुई बहुजन समाज को भी जगाने का काम किया .डॉक्टर अंबेडकर की विचारधारा ने भारतीय समाज में एकजुटता, शिक्षा तथा भाईचारा को बढ़ावा दिया. साथ ही संगठित होकर शासन में दस्तक भी दी. धर्म और जाति पर तो राजनीति हमेशा से चली आ रही है. मगर डॉक्टर अंबेडकर को अपनाने की जो होड़ मची हुई है अंबेडकरिज्म कम और आडंबरिज़्म ज्यादा लगता है. डॉक्टर अंबेडकर को अपनाने की होड़ के पीछे कई कारण हो सकते हैं. दलितों और वंचितों पर लगातार हो रहे अत्याचार, शोषण, हत्याएं भेदभाव, जिसमें रोहित वेमुला ऊना कांड आदि अनेक घटनाओं ने देश के दलितों को एकजुट होने में उत्प्रेरक का कार्य किया है. सभी दल यह जानते हैं कि डॉ आंबेडकर भारतीय संविधान के निर्माता के साथ-साथ वंचित वर्ग केउद्धारक भी हैं इसलिए उनको समरण करना उनके लिए राजनीतिक मजबूरी है। वरना कोई भी हिंदूवादी राजनीतिक दल डॉक्टर अंबेडकर को अपनाकर आ बैल मुझे मार के मोहरे को नहीं बनाना चाहेगा.
राजनीतिक तौर पर दलितों को राष्ट्रपति भी बनाया गया है मगर वह संविधान की कसम मां से लेकर 5 साल चुपचाप दलितों पर हो रहे अत्याचार भेदभाव शोषण को आंखों में पट्टी बांधकर निकाल देते हैं वरना वर्तमान राष्ट्रपति यह नसीहत नहीं देती कि आगे बढ़ने के लिए आरक्षण जरूरी नहीं है
राजनीतिक सम्मान से ज्यादा सामाजिक सम्मान होता है. जिससे भारतीय दलित और वंचित समाज अभी भी कोसों दूर है. राजनीतिक महत्वाकांक्षा में दलित वर्ग के भी कुछ लोग डॉक्टर अंबेडकर की विचारधारा के साथ छलावा कर रहे हैं .उनका एकमात्र लक्ष्य सांसद ,विधायक और मंत्री बनना रह गया है. आजादी के इतने लंबे अरसे के बाद भी दलितों को राजनीति के अलावा अन्य क्षेत्रों में कभी भी पूर्ण प्रतिनिधित्व अभी तक नहीं मिला है .भारतीय प्रशासनिक सेवा से लेकर तृतीय, चतुर्थ श्रेणी के सरकारी पदों में लाखों की संख्या में बैकलॉक के पद रिक्त पड़े हैं. न्यायपालिका में वंचित वर्ग का प्रतिनिधित्व न के बराबर है .भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में सातवें नंबर पर हमारा देश है. मगर देश की आबादी का 85% दलितों ,पिछड़ों तथा आदिवासियों के पास इस भू-भाग का कितना प्रतिशत है? इस आबादी का अधिकांश तबका भवन से वंचित है ,क्योंकि वह भूमि से वंचित है .जो सदियों से उपेक्षित है वही शोषित और कुपोषित भी हैं. दलित वर्ग जब राम,कृष्ण ,दुर्गा, काली को पूजने के लिए अंध भक्ति में लीन था, तब उसको मंत्रों, पूजा-अर्चना से दूर रखा गया और प्रताड़ित कर मंदिरों से बाहर खदेड़ा दिया जाता है. आज जब वही उपेक्षित समाज जय श्री राम न कहकर जय भीम कहने लगा है तथा अंबेडकर को पूजने और मानने लगा है तो ,हिंदू समाज को यह गवारा नहीं है. इसीलिए आज देश के कई शहरों में डॉक्टर अंबेडकर की प्रतिमाओं को खंडित किया जा रहा है. आज भी दलितों के सामने बड़ी विकट स्थिति पैदा हो गयी है.उनसे जबरन जय भीम के स्थान पर जय श्री राम कहने के लिए मजबूर किया जा रहा है. देश की संसद में 131 सांसद दलित वर्ग के हैं .दलितों पर हो रहे अत्याचार,शोषण और संवैधानिक अधिकारों के हनन होने पर ये सांसद गांधी के तीन बन्दर बन जाते हैं.समाज को डॉ0 आंबेडकर के नाम पर भावुकता में बहलाकर ये समाज का राजनीतिक लाभ तो लेते हैं मगर दलित वर्ग के हितों की अनदेखी कर सिर्फ अपने राजनीतिक दलों के मोहरे बन कर रह जाते हैं.उदित राज और राम विलास पासवान,आठवले ऐसे उदाहरण हैं ,जिन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांशा के लिए डॉ0 आंबेडकर का राजनीतिकरण ही किया है . नेताओं का अंबेडकर प्रेम समाज को जागृत करने में असफल रहा है. इसी का परिणाम है कि अंबेडकर की मूर्तियों को खंडित कर विचारधारा को खण्डित करने की साजिस हो रही है. जबकि संपूर्ण हिंदू धर्म मूर्तियों की ही विरासत पर टिका है. अगर राजनीतिक दल डॉक्टर अंबेडकर के प्रति इतनी श्रद्धासील हैं तो उस समाज की हकीकत को समझें जिस समाज में पैदा होकर अंबेडकर अपमान और भेदभाव झेलते रहे उस समाज को मुख्य धारा में जोड़ने के लिए ईमानदारी के साथ प्रयास करने होंगे.सिर्फ चुनावों के वक्त दलितों के घर भोजन करने से असमानता खत्म नहीं होगी.इसके लिए समाज को सोच बदलने की जरूरत है.Like